Monday, 14 November 2022

मायानन्द मिश्र

मायानन्द मिश्रक हिनक जन्म १७ अगस्त १९३४ ई. केँ सुपौल जिलाक बनैनियाँ गाममे भेलनि। तत्कालीन बनैनियाँ कोसीक प्रकोपसँ उजड़ि गेल। फलतः हिनक आरम्भिक शिक्षा अपन मामा स्व. रामकृष्ण झा “किसुन” क सान्निध्यमे सुपौलसँ भेलनि। उच्च शिक्षाक हेतु ई दरभंगा चलि गेलाह आऽ ओतएसँ बी.ए. कएल। पश्चात् बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुरसँ हिन्दी एवं मैथिलीमे एम.ए. कएलनि। १९५६ ई. मे आकाशवाणी पटनामे मैथिली कार्यक्रमक लेल नियुक्त भेलाह। एहि अवधिमे

मायानन्द बाबू १० गोट रेडियो नाटक लिखलनि जे अत्यन्त प्रशंसनीय रहल। १९६१ ई.मे ओऽ व्याख्याता, मैथिली विभाग, सहरसा कॉलेज सहरसा, पदपर नियुक्त कएल गेलाह, जतए ई विश्वविद्यालय आचार्य एवं मैथिली विभागाध्यक्षक पदकेँ सुशोभित कएल तथा एक सफल शिक्षकक रूपमे अगस्त १९९४ मे एही विभागसँ अवकाश ग्रहण कएलनि।

छात्रजीवनसँ हिनक सुकोमल गेय गीतक रचना-
“नभ आंगनमे पवनक रथपर कारी कारी बादरि आयल।
देखितहि धरणीक बिषम पियास, सजल-सजल भए गेल आकाश
बिजुरी केर कोमल कोरामे डुबइत सुरुज किरण अलसायल।
झिहरि-झिहरि सुनि गगनक गान, धरणि अधर पर मृदु मुसुकान
आकुल कोमल दूबरि दूभिक मनमे नव-नव आशा उमड़ल।”

मैथिली काव्य मंचक श्रोताक हृदयकेँ जीति चुकल छल। आचार्य रमानाथ झाक “कविता कुसुम” मे ई कविता स्थान पाबि विश्वविद्यालयक पाठ्यक्रममे अध्ययन-अध्यापनक हेतु स्वीकृत भेल। हिनक उद्घोषण-कला आऽ मंच-संचालन कौशलसँ मैथिलीक कोन मंच नहि लाभान्वित भेल होएत। तेँ हिनका मैथिली मंचक सम्राट कहल जाइत छल। १९६० ई.सँ २००० ई. धरि सफलतम मंच संचालन आऽ अपन चुम्बकीय वाणीसँ मैथिली जनमानसकेँ अपना दिस आकृष्ट कएलनि। भाषा आन्दोलनक सूत्रधारक रूपमे हिनक सहयोगकेँ मिथिला आऽ मैथिली सेहो सभदिन स्मरण राखत।

पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥

दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।

माया बाबूक पहिल रचना १९५१ मे प्रकाशित “भांगक लोटा” व्यंग्यात्मक कथासंग्रह छलनि जे मैथिली पाठक वर्गकेँ एकत्रित कएलक आऽ हिनका ख्याति देलक। आधुनिक मैथिली साहित्यमे आलोचनात्मक यथार्थवाद हिनक रचनामे पाओल जाइत अछि। “आगि मोम आऽ पाथर” (१९६०) एवं “चन्द्रबिन्दु” (१९८३) एहि शृंखलाक महत्वपूर्ण उपलब्धि थिक। मैथिली साहित्यमे हिनक प्रादुर्भाव कविक रूपमे भेल छलनि जकर परिणति “दिशान्तर” (१९६०) ओ “अवान्तर” (१९८८) एहि दू काव्यसंग्रहमे भेल। प्रयोगवादी कविक रूपमे सेहो हिनका रेखांकित कएल जाइत अछि। मायानन्द बाबोक पहिल उपन्यास “बिहाड़ि पात आऽ पाथर” (१९६०) वैवाहिक समस्यापर लिखल गेल। ओतहि “खोता आऽ चिड़ै” मे समाजक दलित-पीड़ित, उपेक्षित वर्गमे सुनगैत चेतनाकेँ रेखांकित कएल गेल अछि। “मंत्रपुत्र” (१९८६) मे हिनक ऐतिहसिक चिन्तन तथा युग-सत्यक मौलिक उपस्थापन झलकैत अछि। “सूर्यास्त” (२००४) हिनक मानवीय जीवनक अगाध अनुभवक प्रतिफलन अछि। गम्भीर निबन्ध संग्रहक रूपमे “अकथ कथा” (२००४) एवं “भारतीय परम्पराक भूमिका” (२००५) हिनक साहित्य कृतिक विविधताकेँ प्रदर्शित करैत छनि।

“माटी के लोग सोने की नैया”(१९६७) हिन्दीमे हिनक पहिल उपन्यास अछि जे कोसीक मल्लाहक जीवन संघर्षकेँ उजागर करैत अछि। एकर अतिरिक्त हिन्दीमे मायाबाबूक ऐतिहासिक उपन्यासक शृंखला महत्वपूर्ण अछि- “प्रथमं शैलपुत्री च” (१९९०), मंत्रपुत्र (१९९०), पुरोहित (१९९९) आऽ “स्त्रीधन” (२००७) प्राचीन भारतीय सभ्यताक गाथा थिक।

माया बाबूकेँ तीन पुत्र छनि आऽ ओऽ धर्मपत्नी श्रीमति मणि देवीक संग विद्यापति नगर, सहरसामे बसल छथि।

साहित्य अकादमी, दिल्ली आऽ चेतना समिति, पटना केर ३० जुलाई २००६ केर “मीट द ऑथर” पाम्फलेटसँ अंग्रेजीसँ मैथिलीमे अनुदित

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